Monday, February 22, 2010

सब से पहले सबसे आखिर मे तो बस इन्सान हू,.....

मे ना हिन्दु, सिख इसाई ना ही मुस्लमान हू,
सब से पहले सबसे आखिर मे तो बस इन्सान हू,
मे समझ पाया ना अब तक मजहबो के दायरे,
हु क्या मे सचमुच मे काफ़िर या अभी नादान हु
मेने जब माकुल समझा तब किय सजदा अता,
पान्च वक्त की नमाजो से अभी अन्जान हु
जब भी सर को है झुकाया, तब हुआ दिदार तेरा
तुझ से मिलने, मन्दिर मे आने से अभी अन्जान हु
धर्म ओर जाति कि जन्जीरो मे, जो केद है नादान वो
किस तरह आज़ाद हो, वो सोचकर परेशान हु
आसमानो ओर चान्द तारो तक पहुन्च कर भी जो,
मझहबो के अन्धेरो से है घिरा,
एस्से इन्सानो को देख कर हेरान हु

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